तुम...कल
फिर आना
मेरी
कल्पनाओं की प्रेरणा बन कर
किसी
सफ़हे पे बिछ जाना
या
मात्राएँ बन कर
मेरे
टूटे शब्दों को पिरो देना
तुम...कल
फिर आना
तुम
किसी अलंकार में छुप कर बैठ जाना
या
किसी विराम-चिन्ह की बाँहों में सांसें लेना
या
फिर सानी मिसरे में घुल कर
मेरे
गज़ल का संगीत बन जाना
तुम...कल
फिर आना
लम्हा-लम्हा
चुनना टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ना
उन
सारे सब्ज़ यादों कों समेटना
और
मेरे कलम से जज़्बात बन कर बहना
ऐ
राहत-ए-जां
तुम...कल
फिर आना