बेटी की विदाई

एक उबासी सर्दी के पौ फटे
आई एक बुलबुल मेरे आँगन में
अपनी किलकारी कल्लोल से
रंग भर दिया मेरे कोरे सपनों में

तुतला कर बोलती थी जब जब
कानों में रस टपकता था
नन्हे पैरों में पायल की छनछन से
श्रुतियों का आलाप छलकता था

नाज़ुक है, शोख़ है, संभाल कर रखना इसे
आपको अपने जीवन की सरगम दे रहा हूँ
आज मैं आपको बेटी नहीं, वरदान दे रहा हूँ ...


रेशम के धागों में लिपटी मिली थी जब
या पहली बार माँ कह कर बुलाया था
दूध के दाँत गिरे या मुण्डन हुआ जब
हर बार दिल मेरा खुशी से रोया था

हल्दी लग गई गालों पे, मेहँदी रच गई हाथों पे
लाडली बेटी मेरी अब सयानी हो गई
अधिकार इसने अब जरा कम होगा
लगता है आज से बेटी थोड़ी पराई हो गई

सरला है, सुकुमारी है, संभाल कर रखना इसे
आपको अपने जीवन की पूंजी दे रही हूँ
आज मैं आपको बेटी नहीं, वरदान दे रही हूँ ....


जितनी रातें जागे इसके सोने के लिए
इसने वो सारे वापस कर दिए
जितने दिन जलाए इसकी खुशियों के लिए
इसने वो सारे रोशन कर दिए

हमारे आँगन में चहकती थी कल तक
अब आपके घर को भी महकाएगी
कल तक सिर्फ बाबुल का गौरव थी
अब दो-दो कुलों की मर्यादा निभाएगी

संस्कारों की धरोहर है, संभाल कर रखना इसे
आपको अपने कुटिया की शोभा दे रहे हैं
आज हम आपको बेटी नहीं, वरदान दे रहे हैं ....


This poem has been written from the point of view of a lovely couple for whom their daughter is the cynosure of their eyes and they are about to marry her with moist eyes and heavy heart. I penned this poem for my sister who just got married. This one is for you di !!