बेख्वाबी

अब रातें बेरंग सी लगने लगी हैं
ना कहीं वो सियाह सुकून
ना तो वो टिमटिमाते सितारे
मेरे सहर का गीला पैराहन भी सूख गया है
ना गुलों की खुशबू है ना गुलफाम
ना शबनमी सुबह ना कस्तूरी शाम

सुना है कि तुमने इन सब से
अपने बालों का जूड़ा बना लिया है ...