वक्त

तुम्हारी फुर्क़त में जो गुज़र रहा है,
ये वक्त नहीं है,
वो तो जमा पड़ा है
उस कयामत के मंज़र में,
अब तो बस इंतजार है
काश कोई आए ...
और पिघला दे अपनी सरग़ोशियों से वो मंज़र
ताकि वक्त फिर से बहने लगे ।