तोहफ़ा




           तोहफ़ा

आज मैं तुम्हें कुछ पल दे रहा हूँ
माज़ी की शाख़ से तोड़ कर लाया जो
चख-चख कर कुछ मीठे बेर दे रहा हूँ
नाज़ुक है, शोख़ है, संभाल कर रखना इसे
मखमली शाल में लपेट एक सब्ज़ लम्हा दे रहा हूँ
आँखों के चिलमन से उतर मन को भींगाए जो
दिल के दरीचों से रूह की गहराई तक पहुँच जाए जो
बंद लिफाफे में तबस्सुम की वो बौछार दे रहा हूँ
ये सारा तुम्हारा ही दिया हुआ ही तो है
आज तुम्हारा दिया फिर तुम्हें दे रहा हूँ
जिन छोटे-छोटे पलों के सहारे सारी उमर कट जाए
आज तुम्हें वो सारे पल दे रहा हूँ

पर इतना भी नादान सौदागर नहीं मैं
इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ूँगा
इतनी जल्दी साथ नहीं छोड़ूँगा
कुछ यादों के बदले, कुछ और पलों का तुमसे वादा ले रहा हूँ
इसलिए आज तुम्हें कुछ पल दे रहा हूँ
माज़ी की शाख़ से तोड़ कर लाया जो
चख-चख कर कुछ मीठे बेर दे रहा हूँ