मुट्ठी भर सागर की
गहराई नाप लूँ
दिल में एक
सुगबुगाती चाह है मेरी,
पंछी बन आकाश भेद
दूँ
साँसों में ऐसी जान
है मेरी,
तिनका बन किसी
आशियाने में गुम हो जाऊँ
पलकों पे ऐसी
ख़्वाईश है मेरी,
मरूस्थल के शाद्वल
सा सबकी तृष्णा मिटाऊँ
खुद की ही ऐसी प्यास
है मेरी,
पिघल जाऊँ इन्हीं जगाती सपनों की लौ में
बड़ी अनोखी नींद है
मेरी,
हो जाओ साथ मेरे
आओ तुम्हें उम्मीदों
के पर लगाऊँ
आओ तुम्हें आशाओं का
दरिया पार कराऊँ
आज किनारे नाव है
मेरी, नाव है मेरी .....